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रु॒द्रस्य॒ ये मी॒ळ्हुषः॒ सन्ति॑ पु॒त्रा यांश्चो॒ नु दाधृ॑वि॒र्भर॑ध्यै। वि॒दे हि मा॒ता म॒हो म॒ही षा सेत्पृश्निः॑ सु॒भ्वे॒३॒॑ गर्भ॒माधा॑त् ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rudrasya ye mīḻhuṣaḥ santi putrā yām̐ś co nu dādhṛvir bharadhyai | vide hi mātā maho mahī ṣā set pṛśniḥ subhve garbham ādhāt ||

पद पाठ

रु॒द्रस्य॑। ये। मी॒ळ्हुषः॑। सन्ति॑। पु॒त्राः। यान्। चो॒ इति॑। नु। दाधृ॑विः। भर॑ध्यै। वि॒दे। हि। मा॒ता। म॒हः। म॒ही। सा। सा। इत्। पृश्निः॑। सु॒ऽभ्वे॑। गर्भ॑म्। आ। अ॒धा॒त् ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:66» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

किन स्त्री-पुरुषों के पुत्र उत्तम होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ये) जो (मीळ्हुषः) वीर्य सींचनेवाले (रुद्रस्य) वायु के समान बलिष्ठ के (पुत्राः) पुत्र (सन्ति) हैं (यान्, चो) और जिनको (भरध्यै) पोषण वा धारण करने के लिये (दाधृविः) धारण करनेवाली (मही) जो महान् सत्कार करने योग्य है (सा) वह (माता) मान करनेवाली (आ, अधात्) अच्छे प्रकार धारण करती है और (सा, इत्) वही (पृश्निः) अन्तरिक्ष के समान विस्तारवाली (सुभ्वे) जो सुन्दर प्रसिद्ध होता है उस (विदे) जाननेवाले के लिये (हि) ही (महः) महान् (गर्भम्) गर्भ को (नु) शीघ्र अच्छे प्रकार धारण करती है, उन सबको और उस माता रूप स्त्री को तुम सब भाग्ययुक्त जानो ॥३॥
भावार्थभाषाः - वे ही मनुष्य कल्याणरूप होते हैं, जिनके माता पिता ऐसे हैं कि जिन्होंने पूरा ब्रह्मचर्य किया हो ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कयोः पुत्रा वरा जायन्त इत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! ये मीळ्हुषो रुद्रस्य पुत्राः सन्ति याँश्चो भरध्यै दाधृविर्मही सा माताऽऽधात् सेत् पृश्निरिव सुभ्वे विदे हि महो गर्भं न्वधात्ताँस्ताञ्च यूयं भाग्युक्तान् विजानीत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (रुद्रस्य) वायुवद्बलिष्ठस्य (ये) (मीळ्हुषः) वीर्यसेचकस्य (सन्ति) (पुत्राः) (यान्) (चो) (नु) (दाधृविः) धर्त्री (भरध्यै) भर्त्तुम् (विदे) यो वेत्ति तस्मै (हि) खलु (माता) (महः) महान्तम् (मही) महती पूजनीया (सा) (सा) (इत्) एव (पृश्निः) अन्तरिक्षमिव सावकाशा (सुभ्वे) यः सुष्ठु भवति तस्मै (गर्भम्) (आ) (अधात्) ॥३॥
भावार्थभाषाः - त एव मनुष्या भद्रा जायन्ते येषां मातापितरौ कृतपूर्णब्रह्मचर्यौ भवेताम् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्यांच्या माता व पिता यांनी पूर्ण ब्रह्मचर्य पाळलेले असेल तीच माणसे कल्याणकारी असतात. ॥ ३ ॥